Stories Of Premchand

1: प्रेमचंद की कहानी "यह मेरी मातृभूमि है" Premchand Story "Yeh Meri MatraBhoomi Hai"

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Sinopsis

रेलगाड़ी जंगलों, पहाड़ों, नदियों और मैदानों को पार करती हुई मेरे प्यारे गाँव के निकट पहुँची जो किसी समय में फूल, पत्तों और फलों की बहुतायत तथा नदी-नालों की अधिकता से स्वर्ग की होड़ कर रहा था। मैं उस गाड़ी से उतरा तो मेरा हृदय बाँसों उछल रहा था - अब अपना प्यारा घर देखूँगा - अपने बालपन के प्यारे साथियों से मिलूँगा। मैं इस समय बिलकुल भूल गया था कि मैं 90 वर्ष का बूढ़ा हूँ। ज्यों-ज्यों मैं गाँव के निकट आता था, मेरे पग शीघ्र-शीघ्र उठते थे और हृदय में अकथनीय आनंद का श्रोत उमड़ रहा था। प्रत्येक वस्तु पर आँखें फाड़-फाड़ कर दृष्टि डालता। अहा ! यह वही नाला है जिसमें हम रोज घोड़े नहलाते थे और स्वयं भी डुबकियाँ लगाते थे किंतु अब उसके दोनों ओर काँटेदार तार लगे हुए थे। सामने एक बँगला था जिसमें दो अँग्रेज बंदूकें लिये इधर-उधर ताक रहे थे। नाले में नहाने की सख्त मनाही थी। गाँव में गया और निगाहें बालपन के साथियों को खोजने लगीं किन्तु शोक! वे सब के सब मृत्यु के ग्रास हो चुके थे। मेरा घर-मेरा टूटा-फूटा झोंपड़ा - जिसकी गोद में मैं बरसों खेला था, जहाँ बचपन और बेफिक्री के आनंद लूटे थे और जिसका चित्र अभी तक मेरी आँखों में फिर रहा थ